Munawwar Rana Shayari

कभी ख़ुशी से ख़ुशी की तरफ़ नहीं देखा
तुम्हारे बाद किसी की तरफ़ नहीं देखाये सोच कर कि तेरा इंतज़ार लाज़िम है
तमाम उम्र घड़ी की तरफ़ नहीं देखा
हमारा तीर कुछ भी हो निशाने तक पहुंचता है
परिन्दा कोई मौसम हो ठिकाने तक पहुंचता है
घर में रहते हुए ग़ैरों की तरह होती हैं
लड़कियाँ धान के पौदों की तरह होती हैं।
फ़रिश्ते आ कर उन के जिस्म पर ख़ुश्बू लगाते हैं
वो बच्चे रेल के डिब्बों में जो झाड़ू लगाते हैं।
अब जुदाई के सफ़र को मेरे आसान करो
तुम मुझे ख़्वाब में आ कर न परेशान करो।
एक आँसू भी हुकूमत के लिए ख़तरा है
तुम ने देखा नहीं आँखों का समुंदर होना
गर कभी रोना ही पड़ जाए तो इतना रोना
आ के बरसात तिरे सामने तौबा कर ले
ऐ ख़ाक-ए-वतन तुझ से मैं शर्मिंदा बहुत हूँ
महँगाई के मौसम में ये त्यौहार पड़ा है
तुझे मालूम है इन फेफड़ों में ज़ख़्म आए हैं
तेरी यादों की इक नन्ही सी चिंगारी बचाने में
तुम ने जब शहर को जंगल में बदल डाला है
फिर तो अब क़ैस को जंगल से निकल आने दो
तुम्हारे शहर में मय्यत को सब कांधा नहीं देते
हमारे गाँव में छप्पर भी सब मिल कर उठाते हैं
सहरा पे बुरा वक़्त मेरे यार पड़ा है
दीवाना कई रोज़ से बीमार पड़ा है
बुलंदी देर तक किस शख्स के हिस्से में रहती है
बहुत ऊँची इमारत हर घडी खतरे में रहती है
मैं इंसान हूँ बहक जाना मेरी फितरत में शामिल है
हवा भी उसको छु के देर तक नशे में रहती है
Munawwar Rana Quotes & Status in Hindi

बहन का प्यार माँ की ममता दो चीखती आँखें
यही तोहफ़े थे वो जिनको मैं अक्सर याद करता था
जहां तक हो सका हमने तुम्हें परदा कराया है
मगर ऐ आंसुओं! तुमने बहुत रुसवा कराया है
यह एहतराम तो करना ज़रूर पड़ता है
जो तू ख़रीदे तो बिकना ज़रूर पड़ता है
मियां मैं शेर हूं शेरों की गुर्राहट नहीं जाती
मैं लहजा नर्म भी कर लूं तो झुंझलाहट नहीं जाती
मिट्टी में मिला दे कि जुदा हो नहीं सकता
अब इससे ज़ियादा मैं तेरा हो नहीं सकता
मौत का आना तो तय है मौत आयेगी मगर
आपके आने से थोड़ी ज़िन्दगी बढ़ जायेगी
तलवार की नियाम कभी फेंकना नहीं
मुमकिन है दुश्मनों को डराने के काम आए
कच्चा समझ के बेच न देना मकान को
शायद कभी ये सर को छुपाने के काम आए
मैं लोगों से मुलाकातों के लम्हे याद रखता हूँ
मैं बातें भूल भी जाऊं तो लहजे याद रखता हूँ
मौला ये तमन्ना है कि जब जान से जाऊँ
जिस शान से आया हूँ उसी शान से जाऊँ
कहीं पर छुप के रो लेने को तहख़ाना भी होता था
हर एक आबाद घर में एक वीराना भी होता था
किसी दिन ऎ समुन्दर झांक मेरे दिल के सहरा में
न जाने कितनी ही तहदारियाँ आराम करती हैं
नहीं होती अगर बारिश तो पत्थर हो गए होते
ये सारे लहलहाते खेत बंजर हो गए होते
तेरे दामन से सारे शहर को सैलाब से रोका
नहीं तो मेरे ये आँसू समन्दर हो गए होते
घरों को तोड़ता है ज़ेहन में नक़्शा बनाता है
कोई फिर ज़िद की ख़ातिर शहर को सहरा बनाता है
ख़ुदा जब चाहता है रेत को दरिया बनाता है
फिर उस दरिया में मूसा* के लिए रस्ता बनाता है
जो कल तक अपनी कश्ती पर हमेशा अम्न लिखता था
वो बच्चा रेत पर अब जंग का नक़्शा बनाता है
इतनी चाहत से न देखा कीजिए महफ़िल में आप
शहर वालों से हमारी दुशमनी बढ़ जायेगी
आओ तुम्हें दिखाते हैं अंजामे-ज़िंदगी
सिक्का ये कह के रेल की पटरी पे रख दिया
मर्ज़ी-ए-मौला मौला जाने
मैं क्या जानूँ रब्बा जानेडूबे कितने अल्लाह जाने
पानी कितना दरिया जानेआँगन की तक़सीम का क़िस्सा
मैं जानूँ या बाबा जानेपढ़ने वाले पढ़ ले चेहरा
दिल का हाल तो अल्लाह जाने
ऐ अहले-सियासत ये क़दम रुक नहीं सकते
रुक सकते हैं फ़नकार क़लम रुक नहीं सकतेहाँ होश यह कहता है कि महफ़िल में ठहर जा
ग़ैरत का तकाज़ा है कि हम रुक नहीं सकते
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